चित्रकूट: दिनांक 23 मार्च 2025
आल्हा लोकगीत पर आधारित बाबा प्राणनाथ इण्टर कालेज चित्रकूट में एक कार्यशाला कार्यक्रम का आयोजन किया गया
चित्रकूट: संस्कृति मंत्रालय नई दिल्ली के सहयोग से स्वर्रचना फाउंडेशन द्वारा आल्हा लोकगीत पर एक कार्यशाला एवं कार्यक्रम का आयोजन पूरब पलाई स्थित बाबा प्राणनाथ इण्टर कालेज के हॉल में किया गया। मुख्य अतिथि पंकज तिवारी के द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के पश्चात संस्था की सचिव लक्ष्मी हजेला ने सभागार में मौजूद लोगों को सर्वप्रथम आल्हा के बारे में विस्तृत जानकारी दी। लक्ष्मी ने बताया कि आल्हा गायन, वीर रस से भरा लोकगीत है। यह बुंदेलखंड और अवधी की एक प्रमुख कविता है। इसमें महोबा के वीर आल्हा और उनके छोटे भाई ऊदल की वीरता की गाथा है। आल्हा गायन, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड और बिहार व मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में गाया जाता है।
आल्हा गायन की खास बातें: आल्हा गायन, वीरगाथा काल के महान कवि जगनिक द्वारा रचित है, यह परमल रासो पर आधारित है, माना जाता है कि इस कविता की रचना लगभग 1250 ईस्वी में हुई थी,आल्हा गायन में ढोलक, झांझड़ और मंजीरे की संगत में आल्हा गायक तलवार चलाते हुए जब ऊंची आवाज़ में गाते हैं, तो माहौल जोश से भर जाता है। आल्हा गायन, बुंदेलखंड की संस्कृति का हिस्सा है। आल्हा गायन, भोजपुर क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है। आल्हा गायन, रामचरित मानस के बाद किसी अन्य काव्य को इतनी लोकप्रियता नहीं मिली है। आल्हा गायन, साम्प्रदायिक सौहार्द्र का अनुपम उदाहरण है। आल्हा के विवरण के पश्चात गायक दीपक सिंह द्वारा जोशपूर्ण आल्हा गाया गया। सभागार में मौजूद सभी लोग आल्हा गीत की वीरता की गाथा सुनकर रोमांचित हो गए,मुख्य अतिथि पंकज तिवारी ने कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा की और लोक गीतों के संरक्षण के लिए संस्था के इस प्रयास की सराहना की।
कार्यक्रम के अंत में रोमा श्रीवास्तव,गायक दीपक सिंह, राम कुमार, वसुंधरा केसरवानी, दिव्या शुक्ला, डॉ अर्चना सक्सेना, पंकज तिवारी, रेनू सिंह, प्रकाश चंद्र श्रीवास्तव, आर पी श्रीवास्तव को सम्मानित किया गया।