उत्तर रेलवे लखनऊ/दिनाँक 12 सितंबर 2023
उत्तर रेलवे लखनऊ ने लखनऊ में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया
“जो बच्चा बेचता है गुब्बारे आपके बच्चों को, उसे तुम गालियां दोगे खिताब क्या दोगे!” –राजकुमार ज्योति शेखर
“मिलते ही जो लगे हमारा, ऐसा कोई नही मिलता, बन जाए जो आंख का तारा ऐसा कोई नही मिलता”–संजय मल्होत्रा ‘हमनवा
“गाली दुत्कार से कराहता ये बचपन पढ़कर तालियां बटोरी”–राकेश जोशी
“कहकशा चांद तेरे हैं, हर नजर में नजारे तेरे हैं”–डॉ श्वेता श्रीवास्तव
“अखबार में जिन्हें लिखना नही आया, वो अब हाशिए पर हैं जिन्हें झुकना नही आया”–अभिषेक सहज
“माना ये दौर कुछ नवाबी है,हां यही बस यही खराबी है”–सरला आस्मा
“मैं मझधार चीरने वाला,मैंने मैंने किनारे कहां देखे को दाद हासिल हुई”–संजय मल्होत्रा
“बात हिन्दी की जब रेलवे में हिन्दी में बोली जाएगी ” डॉ निर्भय गुप्ता
लखनऊ। अमृत लाल नागर पुस्तकालय व अखिल भारतीय साहित्य परिषद की काव्य गोष्ठी का आयोजन पुस्तकालय प्रांगण,आरक्षण केंद्र, लखनऊ, उत्तर रेलवे में हुआ। राजभाषा पखवाड़े के अन्तर्गत हुए इस कार्यक्रम की शुरुआत आशीष सिंह, स्टेशन निदेशक, लखनऊ द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करके की गई। डाॅ श्वेता श्रीवास्तव ने वाणी वन्दना की।
इस कार्यक्रम का संचालन कर रहे संजय मल्होत्रा ‘हमनवा’ ने आशीष सिंह का आभार व्यक्त करते हुए कहा – मिलते ही जो लगे हमारा, “ऐसा कोई नही मिलता, बन जाए जो आंख का तारा ऐसा कोई नही मिलता” विडंबना और संवेदनाओं को उकेरते हुए राकेश जोशी ने निरीह गरीब बच्चों पर – गाली दुत्कार से कराहता ये बचपन पढ़कर तालियां बटोरी। डाॅ श्वेता श्रीवास्तव की गजल – कहकशा चांद तेरे हैं, हर नजर में नजारे तेरे हैं सराही गई। अभिषेक सहज ने मीडिया पर तंज कसा – वही अखबार में जिन्हें लिखना नही आया, वो अब हाशिए पर हैं जिन्हें झुकना नही आया। प्रसिद्ध कवयित्री सरला आस्मा ने – माना ये दौर कुछ नवाबी है, हां यही बस यही खराबी है के साथ श्रंगार रस से भाव विभोर किया। संजय मल्होत्रा की गजल – मैं मझधार चीरने वाला, मैंने मैंने किनारे कहां देखे को दाद हासिल हुई। गजलों के राजकुमार ज्योति शेखर ने – जो बच्चा बेचता है गुब्बारे आपके बच्चों को, उसे तुम गालियां दोगे खिताब क्या दोगे !जैसी गजलें पढ़कर कार्यक्रम को ऊंचाईयां प्रदान की।
उक्त कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डाॅ निर्भय गुप्ता ने “बात हिन्दी की जब हिन्दी में बोली जाएगी ” पढ़ते हुए सभी कवियों एवं रेल प्रशासन का आभार व्यक्त किया। सभी कवियों को स्मृति चिन्ह देते हुए आशीष सिंह ने साधुवाद ज्ञापित किया एवं रेल कर्मियों से पुस्तकालय का लाभ उठाने व श्रेष्ठ साहित्य के महत्व की बात कही।
भवदीय:– पण्डित बेअदब लखनवी