डुमरियागंज लोकसभा/सिद्धार्थनगर 07 मई 2024
डुमरियागंज लोकसभा संसदीय क्षेत्र से अमर सिंह के आने से लड़ाई हुई त्रिकोणीय
अमर सिंह अपने जातीय समीकरण के प्रभाव से भाजपा का विजय रथ रोकने में होंगे कामयाब या सपा कि साइकिल को लगाएंगे ब्रेक
सिद्धार्थनगर। शोहरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक चौधरी अमर सिंह आजाद समाज पार्टी काशीराम यानी चंद्रशेखर रावण कि पार्टी से डुमरियागंज संसदीय सीट से आज नामांकन किए हैं उनके नामांकन करने से राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल जाएगा।देखना होगा कि इससे किसको कितना फायदा व कितना नुकसान होगा यह बाद की बात है। मगर यह लड़ाई पहला दिन से ही त्रिकोणीय हो गई है ऐसा तमाम रानीतिक विश्लेषकों का मानना है।
चौधरी अमर सिंह की पृष्ठभूमि यह है की विधानसभा चुनाव में भाजपा के सहयोगी अपना दल से विधायक चुने गए थे। व्यक्तिगत मतभेद के कारण बाद में उन्होंने पार्टी छोड़कर छोड़ दिया। फिलहाल बसपा से टिकट मांग रहे थे मगर कहा जा रहा है कि बड़े राजनीतिक लोगो के प्रभाव से कुछ स्थानीय लोगों ने गोरखपुर के नदीम मिर्जा को टिकट दिलाने में सफल हो गए। लेकिन जिद ऐसे की अमर सिंह ने ऐसी जिद किया कि नवगठित पार्टी चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी (काशीराम) से टिकट लेकर ही माने। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि उनके चुनावी रण में आने से किस राजनीतिक दल का नुकसान करेंगे।
मुस्लिम मतदाताओं पर अमर सिंह का प्रभाव कितना – 7000 मतदाता वाले ग्राम सभा कपिलवस्तु के पूर्व में ग्राम प्रधान रहे हैं मुस्लिम बाहुल्य इस ग्राम सभा के मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव होने के बाद भी चुनाव जीत गए।लोग बताते है कि इनका मुस्लिम मतदाताओं पर प्रभाव है। इसीलिए विधानसभा शोहरातगढ में मुसलमान मतदाताओं में उनका प्रभाव देखने को मिल जाता है। इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 26% है। अमर सिंह इसमें से विभाजन कर पाने में सफल हुए तो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के लिए सिर दर्द बन सकते हैं अब देखना है कितना कामयाब होते है।
अमर सिंह फिलहाल सबसे बड़ा संकट भाजपा के लिए बन सकते हैं अमर सिंह के सजातीय अर्थात कर्मी मतदताओं कि संख्या 1लाख 80हजार है।यदि कुर्मी मतदाता एकजुट हो गया तो अमर सिंह तत्काल लड़ाई में आ जाएंगे। बसपा ने नदीम मिर्जा को जो अपना उम्मीदवार बनाए हैं,वह सब अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ है। यदि यह मतदाता खुलकर अमर सिंह के पीछे लामबंद हो गया तो भाजपा प्रत्याशी के लिए चिंता का विषय है।
अमर सिंह के लिए लोकसभा चुनाव में जनसंपर्क के लिए कम समय बचा है। उनकी सबसे बड़ी चुनौती फिलहाल सजातीय कुर्मी मतदाताओं को अपने साथ जोड़ना है। क्योंकि इस चुनाव दलित मुस्लिम समुदाय की पहली प्राथमिकता होगी भाजपा को एकजुट होकर हराना। ऐसे में जब तक कुर्मी मतदाता खुलकर अमर सिंह के साथ में कंधा से कंधा मिलाकर नहीं खड़ा होगा तब तक दलित और मुस्लिम मतदाता उनके साथ जुड़ने से परहेज करेगा या उनके साथ जाना पसंद नहीं करेगा। ऐसे में अमर सिंह को मजबूत बनाने के लिए सजातीय समाज को खुलकर आगे आना होगा। मुस्लिम दलित वोटर उनके साथ चुनाव में कितना सहयोग करेंगे। कुल मिलाकर अमर सिंह के लिए भी चुनौती ज्यादा है अब देखना होगा कि भविष्य में अपने कुर्मी मतदाताओं पर कितनी प्रभाव डाल पाते हैं। आपको बता दें कि तीनों वर्गों के मतदाताओं को अमर सिंह जोड़ने में कामयाब हो गए तो चुनावी रण का समीकरण बदल जाएगा।
अमर सिंह के कहां तक ले जाने में कामयाब होंगे इसी पर फिलहाल सबकी नजरें टिकी हैं। देखने वाली बात है कि वह जनसंपर्क करने में कितना कामयाब होते है तथा भाजपा और सपा को कितना नुकसान पहुंचाएंगे यह तो आने वाला समय बताएगा??? क्योंकि लोकतंत्र में आखिरी फैसला मतदाता ही तय करता है कि किसको दिल्ली भेजेगी और किसकी घर वापसी करवाएगी।