नवदुर्गा:- देवी मां के अवतारों का ये है कारण, नहीं तो खत्म हो जाता संसार..देवी का अवतरण वेद-पुराणों की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए…!!
वैदिक पथिक:- देवी का अवतरण वेद-पुराणों की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए…!! सनातन धर्म में आदिपंच देवों में केवल पांच देवों को माना जाता है, इन आदि पंच देवों मे श्रीगणेश, भगवान विष्णु,मां भगवती, भगवान शिव व सूर्यदेव को माना गया है। वहीं देवी भगवती को परम ब्रह्म के समान ही माना जाता है।भगवत पुराण के अनुसार मां जगदंबा का अवतरण महान लोगों की रक्षा के लिए हुआ है। वहीं देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी का अवतरण वेद-पुराणों की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए हुआ है।
देवी भगवती को बुद्धितत्व की जननी, गुणवती माया और विकार रहित बताया गया है। मां को शांति, समृद्धि और धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का विनाश करने वाली कहा गया है।
ऋृगवेद में देवी दुर्गा को ही आदि शक्ति बताया गया हैं। वहीं सारे विश्व का संचालन करती हैं। समय-समय पर विश्व और अपने भक्तों की रक्षा के लिए देवी ने कई अवतार लिए, जिनका वर्णन कई धर्मशास्त्रों है। ऐसे में देवी भक्तों व जानकारों के अनुसार देवी के इन्हीं अवतारों में से ही कुछ अवतारों के अवतरण का रहस्य इस प्रकार है …!
देवी जगदंबा की उपासना प्रकट हुईं महामाया मां भुवनेश्वरी पौराणिक कथाओं के अनुसार एक महादैत्य रूरु हिरण्याक्ष वंश में हुआ था। इसी रूरु का एक पुत्र था दुर्गम यानि दुर्गमासुर। जिसने ब्रह्मा जी की तपस्या करके चारों वेदों को।अपने अधीन कर लिया।ऐसे में वेदों के ना रहने से समस्त क्रियाएं लुप्त हो गयीं। ब्राह्मणों ने अपना धर्म त्याग दिया।चौतरफा हाहाकार मच गया। ब्राह्मणों के धर्म विहीन होने से यज्ञ-अनुष्ठान बंद हो गये और देवताओं की शक्ति भी क्षीण होने लगी। इससे भयंकर अकाल पड़ा। भूख-प्यास से सभी व्याकुल होकर मरने लगे। दुर्गमासुर के अत्याचारों से पीड़ित देवता पर्वत मालाओं में छिपकर देवी जगदंबा की उपासना करने लगे। उनकी आराधना से महामाया मां भुवनेश्वरी आयोनिजा रूप में इसी स्थल पर प्रकट हुई। समस्त सृष्टि की दुर्दशा देख जगदंबा का ह्रदय पसीज गया और उनकी आंखों से आंसुओं की धारा प्रवाहित होने लगी.जिससे मां के शरीर पर सौ नैत्र प्रकट हुए। देवी के इस स्वरूप को शताक्षी के नाम से जाना गया। मां के अवतार की कृपा से संसार मे महान वृष्टि हुई और नदी- तालाब जल से भर गये। देवताओं ने उस समय मां की शताक्षी देवी नाम से आराधना की। महादैत्यों के नाश के लिए हुआ यह अवतार वहीं जब हम दुर्गा सप्तशती की बात करें तो इसके ग्यारहवें अध्याय के अनुसार,भगवती ने देवताओं से कहा “वैवस्वत मन्वंतर के अट्ठाईसवें युग में शुंभ और निशुंभ नामक दो अन्य महादैत्य उत्पन्न होंगे। तब मैं नंद के घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से जन्म लेकर दोनों असुरों का नाश करूंगी।
जिसके बाद पृथ्वी पर अवतार लेकर मैं वैप्रचिति नामक दैत्य के दो असुर पुत्रों का वध करूंगी। उन महादैत्यों का भक्षण कर लाल दंत (दांत) होने के कारण तब स्वर्ग में देवता और धरती पर मनुष्य सदा मुझे ‘रक्तदंतिका’ कह मेरी स्तुति करेंगे।” इस तरह देवी ने रक्तदंतिका का अवतार लिया।
तब क्रोध में लिया देवी ने यह अवतार-
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माना जाता है कि भीमा देवी हिमालय और शिवालिक पर्वतों पर तपस्या करने वालों की रक्षा करने वाली देवी हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब हिमालय पर्वत पर असुरों का अत्याचार बढ़ा। तब भक्तों ने देवी की उपासना की।उनकी आराधना से प्रसन्न होकर देवी ने भीमा देवी के रूप में अवतार लिया। यह देवी का अत्यंत भयानक रूप था। देवी का वर्ण नीले रंग का, चार भुजाएं और सभी में तलवार, कपाल और डमरू धारण किये हुए। भीमा देवी के रूप में अवतार लेने के बाद देवी ने असुरों का संहार किया।
इस दैत्य के नाश के लिए देवी ने धरा यह रूप-
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पौराणिक कथाओं के अनुसार जब तीनों लोकों पर अरुण नामक दैत्य का आतंक बढ़ा। तो देवता और संत सभी परेशान होने लगे। ऐसे में सभी त्राहिमाम-त्राहिमाम करते हुए भगवान शंकर की शरण में पहुंचे और वहां अपनी आप बीती कह सुनाई।इसी समय आकाशवाणी हुई कि सभी देवी भगवती की उपासना करें। वह ही सबके कष्ट दूर करेंगी। तब सभी ने मंत्रोच्चार से देवी की आराधना की। इस पर देवी मां ने प्रसन्न होकर दैत्य का वध करने के लिए भ्रामरी यानी कि भंवरे का अवतार लिया। कुछ ही पलों में मां ने उस दैत्य का संहार कर दिया। सभी को उस राक्षस के आतंक से मुक्ति मिली। तब से मां के भ्रामरी रूप की भी पूजा की जाने लगी।
*मां के इस स्वरूप ने भक्तों के सारे दु:ख हर लिए एक कथा के अनुसार शताक्षी देवी ने जब एक दिव्य सौम्य स्वरूप धारण किया। तब वह चतुर्भुजी स्वरूप कमलासन पर विराजमान था। मां के हाथों मे कमल, बाण, शाक-फल और एक तेजस्वी धनुष था।इस स्वरूप में माता ने अपने शरीर से अनेकों शाक प्रकट किए। जिनको खाकर संसार की क्षुधा शांत हुई। इसी दिव्य रूप में उन्होंने असुर दुर्गमासुर और अन्य दैत्यों का संहार किया। तब देवी शाकंभरी रूप में पूजित हुईं।
*|| जय हो माँ भगवती ||*