पति की लम्बी आयु के लिए महिलाएं चतुर्ग्रही योग में 10 जून को करेंगी वट सावित्री व्रत – पण्डित आत्मा राम पांडेय काशी..

अखंड सौभाग्य प्राप्ति के लिए वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखा जाता है। इस साल 10 जून गुरुवार को वट सावित्री व्रत रखा जाएगा। हिन्दू धर्म में इस व्रत का एक खास महत्व है।
पण्डित आत्मा राम पांडेय ने बताया कि पुराणों में वर्णन है कि ज्येष्ठ अमावस्या के दिन ही सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण बचाए थे। वट वृक्ष के नीचे बैठकर तपश्या करके सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन व अपने अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। विवाहित महिलाएं इस व्रत को विधि-विधान के साथ रखती हैं। इसके लिए विशेष पूजा सामग्री का ध्यान रखा जाता है। वैसे तो अमावस्या तिथि ही अपने आप में महत्वपूर्ण तिथि होती है। लेकिन ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है।
यह व्रत उतना ही महत्व रखता है जितना करवा चौथ का व्रत. इसमें वट के वृक्ष यानी कि बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है।महिलाएं वट को कलावा बांधते हुए वृक्ष की परिक्रमा करती हैं और व्रत रखती हैं। उत्तर भारत के कुछ राज्यों में विशेष रूप से ये व्रत किया जाता है।
इसके अलावा इस साल वट सावित्री व्रत के दिन सूर्यग्रहण भी लग रहा है। इस बार ये व्रत 10 जून को किया जाएगा लेकिन इसी दिन सूर्य ग्रहण होने से अब महिलाओं के मन में थोड़ी असमंजस हैं, लेकिन यह सूर्यग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इस कारण यहां पर इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा।
सबसे खास बात यह है कि वट सावित्री व्रत के दिन वृषभ राशि में सूर्य, चंद्रमा, बुध और राहु विराजमान रहेंगे। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शुक्र को सौभाग्य व वैवाहिक जीवन का कारक माना जाता है। इस दिन वृषभ राशि में चतुर्ग्रही योग बनना बेहद खास माना जा रहा है। चार ग्रहों के एक राशि में होने पर चतुर्ग्रही योग बनता है। इस योग से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है और कष्टों से मुक्ति मिलती है
पूजन सामग्री: – बांस की लकड़ी से बना हुआ बेना (पंखा), अक्षत, हल्दी, अगरबत्ती या धूपबत्ती, लाल-पीले रंग का कलावा, सोलह श्रृंगार , तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए सिंदूर और लाल रंग का वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए, पांच प्रकार के फल, बरगद पेड़ और पकवान आदि।
वट सावित्री पूजा की विधि: –
वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं जिसे कपड़े के दो टुकड़ों से ढक दिया जाता है। एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है। वट वृक्ष पर महिलायें जल चढ़ा कर कुमकुम व अक्षत चढ़ाती हैं। फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात चक्कर लगाए जाते हैं और चने गुड़ का प्रसाद बांटा जाता है। इसके बाद महिलाएं कथा सुनती हैं।
( पंडित आत्माराम पाण्डेयजी काशी की रिपोर्ट..)