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रघुवर प्रसाद जायसवाल सरस्वती शिशु- मंदिर में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया गया गुरु पूर्णिमा उत्सव

सिद्धार्थनगर-ब्यूरो
दिनाँक-04-07-020

रघुवर प्रसाद जायसवाल सरस्वती शिशु- मंदिर में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया गया गुरु पूर्णिमा उत्सव blank blank blank blank

शहर के रघुवर प्रसाद जायसवाल सरस्वती शिशु मंदिर इंटर कॉलेज तेतरी बाजार में गुरु पूर्णिमा का उत्सव हर्षोल्लास से मनाया गया । कार्यक्रम का शुभारंभ भारतीय शिक्षा समिति पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के शैक्षिक प्रमुख ब्रज किशोर त्रिपाठी ने परम पवित्र भगवा ध्वज पर पुष्पार्चन कर किया। बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए त्रिपाठी ने कबीर दास जी के दोहे पर ध्यानाकृष्ट कराते हुए कहा ” गुरु गोविंद दोऊ खड़े का के लागू पाँव ।बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।।
गुरु को नारायण से भी परम माना गया है ,गुरु को अमृत की खान कहा गया है । गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है ।वस्तुएँ सब जगह है लेकिन हम तब तक उसे देख नहीं पाते जब तक गुरु रूपी प्रकाश प्राप्त नहीं होता । सांप और रस्सी का भेद तब तक नहीं कर पाएंगे जब तक गुरु का मार्गदर्शन हमें प्राप्त नहीं हो सकता ।गुरु के बिना कुछ भी संभव नहीं है।गुरु हमारे सभ्य सामाजिक जीवन का आधार स्तंभ है। ऐसे कई गुरु हुए जिन्होंने अपने शिष्य को इस प्रकार शिक्षित किया कि उनके शिष्यों ने राष्ट्र की धारा को ही बदल दिया । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने परम पवित्र भगवा ध्वज को ही गुरु स्थान पर प्रतिस्थापित किया। इसके पीछे कारण था यह ध्वज अनादिकाल से हमारे लिए आदरणीय रहा । पूर्व में जितनी भारतीय अस्मिता से संबंधित युद्ध लड़े गए उन पर यही ध्वज रहा है देश का सम्मान इसी रूप में देखा जाता था। आज आषाढ़ पूर्णिमा है ।आज के दिन वेदों ,उपनिषदों व पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी का जिन्हें समस्त मानव जाति के गुरु के रूप में माना जाता है उनका प्राकट्य दिवस है। उनके जन्मदिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। जीवन का विकास सुचार रूप से सतत चलता रहे ,इसके लिए हमें गुरु की आवश्यकता होती है ।भावी जीवन का निर्माण गुरुद्वारा ही होता है और गुरु शिष्य का संबंध सेतु के समान होता है। गुरु की कृपा से शिष्य के लक्ष्य का मार्ग आसान हो जाता है। वृत्तांतो से संपूर्ण वांग्मय भरा पड़ा है। यह जीवन त्याग तपस्या के बल पर चलेगा तभी जीवन सफल होगा । इस अवसर पर अपने गुरु को सिर्फ स्मरण करना है। गुरु के महत्व पर प्रकाश डालना तो सूर्य को दीपक दिखाने के समान है । इसके पूर्व प्रधानाचार्य राकेश मणि त्रिपाठी ने अतिथि परिचय कराते हुए कहा पर्व व जयंती भारतीय संस्कृत के अनुसार मनाए जाते हैं ।गुरु पूर्णिमा जिस को व्यास पूर्णिमा के नाम से जानते हैं । विश्वव्यापी महामारी के कारण अन्य वर्षो की भांति इस वर्ष कार्यक्रम मनाए जाने का तरीका कुछ अलग प्रकार का ही है। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक श्री सुरजीत जी समेत समस्त आचार्य बंधुओं की उपस्थिति उल्लेखनीय रही ।

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