पितृपक्ष सोमवार से / पितरों की शांति के लिए करें पिंडदान – आचार्य हनुमान प्रसाद पाण्डेय
बांसी सिद्धार्थ नगर -सोमवार से भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होंगे।इनका समापन 6 अक्टूबर बुधवार को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर होगा।पितृ पक्ष में श्राद्ध भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक यानी कुल 16 दिनों तक चलते हैं और इनमें श्राद्ध का पहला और आखिरी दिन काफी खास माना जाता है। पितृ पक्ष का अंतिम दिन ख़ास होता है ।
उपरोक्त बातें आचार्य हनुमान प्रसाद पांडेय जी ने कहा कि इस वर्ष पितृपक्ष के 15 दिनों का है इन बातों का रखें ध्यान,वरना हो सकते हैं परेशान।पितृ पक्ष में श्राद्ध भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक यानी कुल 16 दिनों तक होंगे। इनकी तिथियों के बारे में आपको यहां बताया जा रहा है।लेकिन ध्यान रखें कि इस वर्ष 26 सितंबर को श्राद्ध की कोई तिथि नहीं है।
पूर्णिमा श्राद्ध – 20 सितंबर
प्रतिपदा श्राद्ध – 21 सितंबर
द्वितीया श्राद्ध – 22 सितंबर
तृतीया श्राद्ध – 23 सितंबर
चतुर्थी श्राद्ध – 24 सितंबर
पंचमी श्राद्ध – 25 सितंबर
षष्ठी श्राद्ध – 27 सितंबर
सप्तमी श्राद्ध – 28 सितंबर
अष्टमी श्राद्ध- 29 सितंबर
नवमी श्राद्ध – 30 सितंबर
दशमी श्राद्ध – 01 अक्टूबर
एकादशी श्राद्ध 02 अक्टूबर
द्वादशी श्राद्ध- 03 अक्टूबर
त्रयोदशी श्राद्ध – 04 अक्टूबर
चतुर्दशी श्राद्ध- 05 अक्टूबर
पितृपक्ष की तिथियों का महत्व :- पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है. जिस व्यक्ति की जिस तिथि पर मृत्यु हुई है, उसी तिथि पर उस व्यक्ति का श्राद्ध किया जाता है. अगर किसी मृत व्यक्ति के मृत्यु की तिथि के बारे में जानकारी नहीं होती है।तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति का श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किया जाता है इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है।
श्राद्ध विधि :- श्राद्ध कर्म किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही करवाना उचित होता है।वैसे अगर संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर ही श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए।अगर ऐसा करना संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए।श्राद्ध कर्म की शुरुआत में ब्राह्मण द्वारा मंत्रोच्चारण करें और अपने पितरों को स्मरण करते हुए पूजा प्रांरभ करें। इसके बाद जल से तर्पण करें और जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर दें। इनको भोजन देते समय अपने पितरों का स्मरण करें और मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करें।इसके बाद ब्राह्मणों को भी भोजन करवाएं और उनको दान दक्षिणा देकर सम्मान के साथ विदा करें।