वास्तु शास्त्र धारावाहिक लेख भाग :-3 घर मे पूजन कक्ष – आचार्य मोरध्वज शर्मा
घर का मंदिर एक पवित्र स्थान है, जहां भगवान की पूजा की जाती हैं। यह स्थान सकारात्मक ऊर्जा और शांति से परिपूर्ण होना चाहिए। यदि मंदिर को वास्तु शास्त्र के अनुरूप बनाया जाए तो घर और उनके निवासियों के लिए सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
वास्तु सम्मत मंदिर निर्माण हेतु घर में पूजा का स्थान ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। वास्तुशास्त्र में पूजा घर के लिए सबसे उपयुक्त स्थान ईशान कोण को ही बताया गया है क्योकि इसी दिशा में ‘ईश’ अर्थात भगवान का वास होता है तथा ईशान कोण के स्वामी वृहस्पतिदेव है, जो की आध्यात्मिक ज्ञान का कारक भी हैं। सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी ईशान कोण से होता है।
ईशान कोण अर्थात उत्तर–पूर्व के स्वामी रूद्र यानि शंकर भगवान है, आयुध त्रिशूल एवं वास्तु मण्डल मे ईशान कोण के स्वामी ग्रह बृहस्पति है । बृहस्पति को आध्यात्मिक विकास तथा उत्थान के लिए सर्वाधिक शुभ ग्रह कहा गया है । इसका प्रभाव सर्वदा सात्विक होता है । ज्योतिष शास्त्र मे वृहस्पतिदेव को वृद्धिकारक माना गया है, और यह पति, पुत्र तथा धन के भी कारक ग्रह है । जन्म कुंडली का द्वितीय एवं तृतीय भाव ईशान कोण में आते है ।
1. इस दिशा मे वास्तुपुरष का सिर है । इस प्रकार इन तीन वजहो के कारण इस पवित्र जगह की मर्यादा तथा पवित्रता को बनाये रखना अत्यंत आवश्यक है । अतः पूजा स्थल सदैव ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व मे ही होना चाहिए।
2. किसी कारणवश यदि ईशान कोण मे मंदिर बनाना संभव न हो पाये तो दूसरी पसंद के रूप मे पूर्व दिशा की ओर मंदिर बनाया जाना चाहिए, यदि किसी कारणवश यदि पूर्व दिशा भी मंदिर बनाने के लिए उपलब्ध न हो पाये तो तीसरी पसंद के रूप मे उत्तर दिशा की ओर मंदिर बनाया जाना चाहिए ।(परंतु किसी भी हालात मे मंदिर घर की दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में नहीं होना चाहिए।)
3. अगर घर में अलग से पूजा का कमरा बनाने की जगह नहीं है तो ऊपरलिखित दिशा मे लकडी से बना दो पल्लो वाला छोटा मंदिर रखकर पूजा की जानी चाहिए । परंतु मंदिर को सीधे जमीन पर नही रखना चाहिए । इसे किसी ऊंचे स्थान या चौकी पर स्थापित होना चाहिए।
4. मंदिर कभी भी बैठक, शयनकक्ष, रसोईघर या गैलरी में नहीं होना चाहिए। बेसमेंट तथा सीढियो के बीच में बना पूजा कक्ष भी वर्जित है, इन स्थानों मे निर्मित पूजाकक्ष वास्तु दोष तथा अन्य गंभीर नकारात्मक प्रभाव देते हैं ।
5. मंदिर सदैव लकड़ी का बना होना चाहिेए। शीशे, संगमरमर या अन्य सामग्री से बना मंदिर नही होना चाहिए ।
6. घर के मंदिर की ऊंचाई उसकी चौड़ाई से दुगुनी होनी चाहिए। मंदिर के परिसर का फैलाव अपनी ऊंचाई से 1/3 होना श्रेष्ठ होता है।
7. मंदिर पूर्णतः व्यवस्थित होना चाहिए। इसमें एक ही जैसे देवी-देवता खड़े तथा बैठी हुई दोनो ही मुद्राओ में नहीं होने चाहिए।
8. ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य और कार्तिकेय, गणेश, दुर्गा की मूर्तियों का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए, यानि इन देवताओं की पीठ पूर्व दिशा की ओर होनी चाहिए ।
9. पूजा कक्ष सदैव पूर्व दिशा अथवा घर के ईशान में होना चाहिए, तथा पूजा करते समय व्यक्ति पूर्व या ईशान दिशा में बैठे, अथवा उसका मुंह पूर्व या ईशान की तरफ होना चाहिए।
10. ईशान कोण में बड़ा चबूतरा (platform) बनाकर भगवान का पूजा स्थल बनाकर इस दिशा मे भार डालना गलत होता है, यहां पर पूजास्थल सामान्य सी ऊंचाई पर ही होना चाहिए ।
11. आधुनिक काल मे जगह की तंगी के कारण पूर्व अथवा ईशान कोण की दीवार में प्रकोष्ठ (आला) बनाकर भी पूजा स्थल बनाया जा सकता है, परन्तु इस प्रकोष्ठ (पूजास्थल) के ऊपर अन्य वस्तुएं अथवा दूसरा आला (प्रकोष्ठ) नहीं होने चाहिए।
12. पूर्व दिशा मे लोहे की अलमारी के ऊपरी हिस्से अर्थात खाने में पूजा स्थल स्थापित हो सकता है, परन्तु यहां की गई पूजा चलायमान यानि चंचल पूजा होगी, इसलिए पूजन कक्ष सदैव स्थिर और स्थाई होना चाहिए।
13. घर का पूजन कक्ष स्वतंत्र अर्थात अलग कक्ष मे ही बनाया जाना अवश्यक होता है, इससे मनुष्य आध्यात्मिक शक्ति से परिपूर्ण तथा तेजस्वी होता है।
14. मंदिर मे चांदी का उपयोग सर्वदा वर्जित है, चांदी देवकार्य मे नही पितृकार्य हेतु शुभ होती है।
15. घर तथा मंदिर मे एक फुट से बडी मूर्ति नही रखना चाहिए।
16. पूजा कक्ष को प्रतिदिन साफ करना आवश्यक है।
17. पूजाकक्ष मे बिजली का सामान, अलमारियां या अन्य सामान नही होना चाहिए, तथा पूजाघर को स्टोर रूम की भांति इस्तेमाल नही करना चाहिए।
18. पूजाघर की दीवार के साथ स्नानागार अथवा शौचालय नही होना चाहिये।
19. रसोईघर में पूजास्थल होने से परिवार दुःखी एवं संतप्त रह सकते हैं। उनके पूर्वज एवं भगवान दोनों ही उनसे नाराज रहते हैं, क्योंकि भगवान तो भाव एवं गंध को ही प्राप्त करते है। रसोई घर में जो भी आप पकाया जाता हैं, वह गंध रूप मे भगवान एवं पूर्वजों दोनों को ही प्राप्त हो जाता है, और आधुनिक काल मे रसोईघर मे वांछित पवित्रता तो किसी भी तरह से, पूर्ण रूप से किसी शाकाहारी परिवार मे होना असंभव है, और तब यह और भी कठिन हो जाता है जबकि झूठे बर्तन भी वही पर ही धोये जाते हो।
(क्रमशः) लेख के चौथे भाग मे कल “घर मे पूर्वजो के चित्र” विषय पर लेख। __________________________
आगामी लेख:- 18 नव० से 27 नवं० तक “वास्तुशास्त्र” विषय पर धारावाहिक लेख। 28 नवम्बर को “स्कंदषष्ठी” पर लेख 29 नवम्बर “चम्पा षष्ठी” पर लेख _________________________ ☀️
जय श्री राम आज का पंचांग रविवार, 20.11.2022 श्री संवत 2079 शक संवत् 1944 सूर्य अयन- दक्षिणायन, गोल-दक्षिण गोल ऋतुः- हेमन्त ऋतुः। मास- मार्गशीर्ष मास। पक्ष- कृष्ण पक्ष । तिथि- एकादशी तिथि 10:44 am तक चंद्रराशि- चंद्र कन्या राशि मे। नक्षत्र- हस्त नक्षत्र अगले दिन 00:36 am तक योग- प्रीति योग 11:02 pm तक (शुभ है) करण- बालव करण 10:44 am तक सूर्योदय- 6:47 am, सूर्यास्त 5:25 pm अभिजित् नक्षत्र- 11:45 am से 12:27 pm राहुकाल- 4:05 pm से 5:25 pm (शुभ कार्य वर्जित ) दिशाशूल- पश्चिम दिशा।
सर्वार्थ सिद्ध योग:- 20 नव० 6:47 am से 20/21 नव० अर्द्धरात्रि 12:36 am तक (यह एक शुभयोग है, इसमे कोई व्यापारिक या कि राजकीय अनुबन्ध (कान्ट्रेक्ट) करना, परीक्षा, नौकरी अथवा चुनाव आदि के लिए आवेदन करना, क्रय-विक्रय करना, यात्रा या मुकद्दमा करना, भूमि , सवारी, वस्त्र आभूषणादि का क्रय करने के लिए शीघ्रतावश गुरु-शुक्रास्त, अधिमास एवं वेधादि का विचार सम्भव न हो, तो ये सर्वार्थसिद्धि योग ग्रहण किए जा सकते हैं।
अमृत सिद्धि योग :- 20 नव० 6:47 am से 20 नव० अर्द्धरात्रि 12:36 am तक, इस योग मे सर्वार्थ सिद्ध योग वाले कामो के अलावा प्रेमविवाह, विदेशयात्रा तथा सकाम अनुष्ठान करना शुभ होता है। _________________________
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