लखनऊ – 13 अगस्त 2024
बच्चों को दण्ड देने पर लगा प्रतिबंध/महानिदेशक स्कूल शिक्षा ने समस्त बेसिक शिक्षा अधिकारी को भेजा पत्र
महानिदेशक स्कूल शिक्षा एवं राज्य परियोजना निदेशक कार्यालय,समग्र शिक्षा-विद्या भवन निशातगंज लखनऊ
द्वारा पत्र लिखकर निर्देश जारी किया है कि उत्तर प्रदेश के समस्त जनपद के बेसिक शिक्षा अधिकारी स्कूलों में किसी भी बच्चे को दंड नही दिया जायेगा। महानिदेशक स्कूल शिक्षा ने पत्र में निर्देश दिया है कि…. कृपया उपर्युक्त विषयक कार्यालय के पत्रांक संख्या 12166 दिनांक 03 जनवरी का संदर्भ ग्रहण करने का कष्ट करें,जिसके द्वारा विद्यालय में अध्ययनरत बच्चों को किसी भी प्रकार की शारारिक व मानसिक दंड न देने के विस्तृत निर्देश दिए गए थे। उक्त के संबंध में पुनः निम्नवत निर्देश किया जाता है कि….शासनादेश संख्या 1466/15,07,2007, शिक्षा (7) अनुभाग,दिनांक 10 अक्टूबर 2007 द्वारा बच्चों को दण्ड दिए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए बच्चो एवम उनके अधिकारों के प्रति असंवेदन शीलता हिंसक संस्कृति के द्योतक मानते हुए हिंसा को पूर्णतया प्रतिबंधित किया गया है। इसके साथ ही बच्चो को शारीरिक दण्ड में यथा–बच्चो को झड़ना, फटकारना, परिसर में दौड़ाना
चिकोटी काटना, चाटा मारना, घुटनो के बल बैठना,यौन शोषण, प्रताणना, क्लास रूम में अकेले बंद करना,बिजली का झटका देना, एवं अन्य किसी प्रकार के कृत्य जो अपमानित करके नीचा दिखाना,शारीरिक एवं मानसिक रूप से आघात पहुंचाने,और अंततः मृत्यु कारित करने वाले हों,सम्मिलित हैं।
उक्त शासनादेश को राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग द्वारा समस्त राज्यों के शिक्षा विभाग को निम्न्वत निर्देश दिए गए हैं।
1) समस्त बच्चों को व्यापक प्रचार प्रसार के माध्यम से अवगत कराया जाए कि उन्हें शारीरिक दण्ड के विरोध में अपनी बात कहने का अधिकार है। इसे संबंधित अधिकारियों के संज्ञान में लाया जाए।
2) प्रत्येक स्कूल जिसमें छात्रावास, जे0जे0 होम्स, बाल संरक्षण गृह व अन्य संस्थाएं भी सम्मिलित हैं/में एक ऐसा फोरम बनाया जाए जहां बच्चे अपनी बात को रख सकें। ऐसी संस्थानों को किसी एनजीओ की सहायता भी लेनी चाहिए।एवं राज्य परियोजना निदेशक कार्यालय,समग्र शिक्षा-विद्या भवन निशातगंज लखनऊ
द्वारा पत्र लिखकर निर्देश जारी किया है कि उत्तर प्रदेश के समस्त जनपद के बेसिक शिक्षा अधिकारी स्कूलों में किसी भी बच्चे को दंड नही दिया जायेगा।
कृपया उपर्युक्त विषयक कार्यालय के पत्रांक संख्या 12166 दिनांक 03 जनवरी का संदर्भ ग्रहण करने का कष्ट करें,जिसके द्वारा विद्यालय में अध्ययनरत बच्चों को किसी भी प्रकार की शारारिक व मानसिक दंड न देने के विस्तृत निर्देश दिए गए थे। उक्त के संबंध में पुनः निम्नवत निर्देश किया जाता है कि….शासनादेश संख्या 1466/15,07,2007, शिक्षा (7) अनुभाग,दिनांक 10 अक्टूबर 2007 द्वारा बच्चों को दण्ड दिए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए बच्चो एवम उनके अधिकारों के प्रति असंवेदन शीलता हिंसक संस्कृति के द्योतक मानते हुए हिंसा को पूर्णतया प्रतिबंधित किया गया है। इसके साथ ही बच्चो को शारीरिक दण्ड में यथा–बच्चो को झड़ना, फटकारना, परिसर में दौड़ाना,चिकोटी काटना, चाटा मारना, घुटनो के बल बैठना,यौन शोषण, प्रताणना, क्लास रूम में अकेले बंद करना,बिजली का झटका देना, एवं अन्य किसी प्रकार के कृत्य जो अपमानित करके नीचा दिखाना,शारीरिक एवं मानसिक रूप से आघात पहुंचाने,और अंततः मृत्यु कारित करने वाले हों,सम्मिलित हैं।
उक्त शासनादेश को राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग द्वारा समस्त राज्यों के शिक्षा विभाग को निम्न्वत निर्देश दिए गए हैं।
1) समस्त बच्चों को व्यापक प्रचार प्रसार के माध्यम से अवगत कराया जाए कि उन्हें शारीरिक दण्ड के विरोध में अपनी बात कहने का अधिकार है। इसे संबंधित अधिकारियों के संज्ञान में लाया जाए।
2) प्रत्येक स्कूल जिसमें छात्रावास, जे0जे0 होम्स, बाल संरक्षण गृह व अन्य संस्थाएं भी सम्मिलित हैं/में एक ऐसा फोरम बनाया जाए जहां बच्चे अपनी बात को रख सकें। ऐसी संस्थानों को किसी एनजीओ की सहायता भी लेनी चाहिए।