हुनर ऑफ इंडिया के साहित्यिक पण्डाल में कवयित्री सम्मेलन एवं सम्मान समारोह सम्पन्न–पं0 बेअदबी लखनवी
लखनऊ। आज अलीगंज सेक्टर (ओ) स्थित पोस्टल ग्राउंड में चल रहे हुनर ऑफ इंडिया के साहित्यिक पण्डाल में लखनऊ की लक्ष्य संस्था द्वारा एक कवयित्री सम्मेलन एवं सम्मान समारोह आयोजित किया गया। जिसमें देश की प्रतिष्ठित कवयित्रियों ने कविता पाठ किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता – रेणु वर्मा रेणु ने की।
मुख्य अतिथि प्रतिभा गुप्ता व विशिष्ट अतिथि डॉ श्वेता श्रीवास्तव रहीं। वाणी वंदना श्रीमती वन्दना विशेष व संचालन कवयित्री डॉक्टर निशा सिंह नवल ने किया।
वाणी वंदना के पश्चात सम्मान समारोह आयोजित किया गया जिसमें देश की प्रतिष्ठित सात कवयित्रियों को “साहित्य साधना सम्मान”, अंग वस्त्र, गणेश प्रतिमा एवं प्रमाण पत्र देकर किया गया। जिसका संचालन डॉ. प्रवीण कुमार शुक्ला गोबर गणेश ने किया। सम्मानित कवयित्रियों में श्रीमती अनीता सिन्हा, संध्या त्रिपाठी, हेमा पांडेय, सरिता कटियार “सदाबाहर”, सुश्री अर्चना अभिनव सिंह, अनुजा मनु, लक्ष्मी शुक्ला के नाम प्रमुख है।
द्वितीय सत्र में कवयित्रियों ने अपनी कविताओं से खूब वाह वाही लूटी एवं श्रोताओं को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया।
काव्य पाठ करने वाली कवयित्रियों में सर्वप्रथम वन्दिता पाण्डेय ने घनाक्षरी छंद सुनाया –
मिलता समाज में जो आज कल मान यहां, कारण ये पूर्वजों की अमिट कहानी है। हम कैसे छोड़ देंगे लिखना कवित्त छंद, कविता हमारे परिवार की निशानी है।।
तत्पश्चात प्रिया सिंह ने अपनी ग़ज़ल सुनाई – जज़्बा वफा का दिल से रवाना नहीं हुआ, दीवानगी में उनको भुलाना नही हुआ! सारा लहु पिला दिया लफ़्ज़ों को ज़हन का, और आप कह रहे हो तराना नहीं हुआ!
इस अवसर पर कवयित्री हेमा पांडेय ने अपने काव्य पाठ में कहा कि –
जमाने में हुआ करती यहां लाखो की बदमाशी, कभी साखों की बदमाशी कभी पाखों की बदमाशी। अजूबे सात दुनियां में मगर अब आठवां ये है, मेरी आंखों का भोलापन तेरी आंखों की बदमाशी। वही इस अवसर पर अनुजा मनु ने अपने काव्य पाठ में कहा कि –
न थके है पाँव कभी ना ही, हिम्मत हारी है, मैंने देखे हैं कई दौर और आज भी सफर जारी है।
तत्पश्चात संध्या त्रिपाठी ने अपने काव्य पाठ में कहा कि –
राम को जनिए राम के नाम से सारे संकट कटें राम के नाम से ।
कवयित्री अर्चना सिंह ने अपने काव्य पाठ में कहा कि – मुझे कर्मों पे अपने है भरोसा , मुकद्दर से नहीं शिकवा- गिला है।
इस अवसर पर प्रतिभा गुप्ता ने कहा कि – है चिंता की बात यह , कैसा हुआ समाज, नन्हीं-नन्हीं बेटियाँ, नहीं सुरक्षित आज।
कवयित्री डॉक्टर निशा सिंह नवल ने अपने काव्य पाठ में कहा कि –
खुशी जो माँ के आँचल में है, शोहरत में नहीं देखी, दुवा जो बात में उसकी, वो दौलत में नहीं देखी, भले जिन्दगी का दौर, कितना हो बुरा लेकिन, मगर कोई कमी माँ की, मुहब्बत में नहीं देखी।
तत्पश्चात डॉ. श्वेता श्रीवास्तव ने काव्य पाठ करते हुये कहा कि –
अकेले बैठती हूँ जब तुम्हीं से बात होती है, मैं खुद को सोचती हूँ जब, तुम्हीं से बात होती है, मेरी ख़ातिर तड़पता है ज़माना बात हो जाये, मगर मैं चाहती हूँ जब तुम्हीं से बात होती है।
तत्पश्चात कवयित्री सारिता कटियार ने कहा कि– तन्हा ना छोडूंगी चाहे खुद तन्हा रह जाऊंगी, गीत सुना कर जोक पढ़ा के तुझको हंसाऊंगी, है ना कोई खिलौना फिर भी जी बहलाती सरिता, तुझपे कष्ट न आने दूंगी मरहम बन लग जाऊंगी।
तत्पश्चात कवयित्री अल्का अस्थाना ने अपने काव्य पाठ में कहा कि –
स्मृतियों में है वो मां मेरी, नमी आंखों से कहते हैं। विचारों में ढूंढते रहते हैं,नमी आंखों से कहते हैं।
बाल कवित्री अनीता सिन्हा ने कहा कि हाथ में लेके एक तिरंगा पिंटू माँ से बोला आज सिला दो माँ मुझको एक केसरिया चोला।
कवित्री लक्ष्मी शुक्ला ने कहा कि–
बहे ज्यों गंग जलधारा रवानी हो तो ऐसी हो, अमर सदियों तलक है जो कहानी हो तो ऐसी हो।
वरिष्ठ कवयित्री रेणु वर्मा ने अपने काव्य पाठ में कहा कि– हो लक्ष्य पर जिनकी निगाहें ठोकरें खुद मीत बन जाती। बनाते समन्दर चीर कर राहें लहरें मधुर संगीत बन जाती।
कवयित्रियों की कविताओं पर दाद देने वाले व तालियां बजाने वालों में प्रमुख नाम आचार्य ओम नीरव, भ्रमर बैसवारी, डॉ गोबर गणेश, मन मोहन बाराकोटी, कन्हैया लाल, कुंवर कुसुमेस, सिद्धेश्वर शुक्ल क्रांति, कृष्णानंद राय, राजीव पंत, अमर प्रकाश सिंह, अश्विनी वर्मा, डॉ शरद पाण्डेय सशांक आदि रहे। अंत में धन्यवाद ज्ञापन संस्था के सचिव डॉ. शरद पांडेय शशांक ने किया।